स्वस्थ-शरीर
पद-परिचय-सोपान
स्वस्थ-शरीर ज्ञान-जिज्ञासा अर्थात् साधना-तपस करने के लिये स्वस्थ्य शरीर की
वाँक्षना सहज समझ में आने वाली है । उपरोक्त की अभिव्यक्ति विभिन्न विद्वान
विलक्षण प्रकार से करते हैं । यदि व्यक्ति अपनी स्थूल-शरीर को स्वस्थ्य रखने के
लिये, सज्ञान-पूर्वक नियमित चेष्टा नहीं करेगा, तो उसे बाध्य होकर रोग-बाधाओं के निवारण के लिये अनियन्त्रित समय व्यय
करना अ-परिहार्य है । उपनिषदों की स्तुतियों में भी स्वस्थ शरीर की प्रार्थना की
जाती है । स्थूल-शरीर ही तपस का आधार स्थल है । स्थूल-शरीर को
नियमित-सज्ञान-चेष्टाओं द्वारा स्वथ्य रखना, समाधि-योग का पहला चरण है । ..... क्रमश:
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