माया का लक्षण काल
माया-कल्पित-जगत्-सोपान माया का लक्षण काल काल क्या है ? विद्वान काल का उद्भव श्रोत परिवर्तन बताते हैं । काल अर्थात् परिवर्तन है । परिवर्तनो का न ही ओर है , और न ही छोर है । जिसका न ओर है न छोर है , वह माया है । परिवर्तन माया है । अ-निर्वचनीय माया है । माया की प्रकृति परिवर्तन है । माया-लोक का प्रत्येक अवयव परिवर्तन से आक्रान्त है । जन्म है , मृत्यु है । दोनो ही परिवर्तन मात्र हैं । स्त्री के गर्भ में स्थित भ्रूण परिवर्तित होकर , शिशु है । शिशु ही परिवर्तनो के द्वारा किशोर , युवा , प्रौढ , वृद्ध और अन्तिम परिवर्तन मृत्यु है । यह सभी परिवर्तन मात्र माया है । उपरोक्त समस्त में तात्विक कुछ भी नहीं है । फिरभी लोक है , लोकव्यवहार है । यही माया-लोक है । माया की उत्पत्ति , आत्मा के संकल्प मात्र से हो जाती है । यह प्रत्येक व्यक्ति का नित्य का अनुभव है । केवल व्यक्ति अपने को और अपने लोक को , विश्लेषणात्मक ढंग से कभी विचार नहीं करता है । काल , माया का दूसरा लक्षण है । ..... क्रमश: