संकल्प-सृष्टि


माया-कल्पित-जगत्-सोपान
संकल्प-सृष्टि पूर्व में वर्णित क्रम-सृष्टि से विलक्षण, एक और सृष्टि नामत: संकल्प-सृष्टि होती है । आपका मस्तिष्क जब स्वप्न-लोक की रचना करता है, तब क्या होता है ? क्या उसमें कोई क्रम होता है ? नहीं, स्वप्न दृष्य तत्काल और सम्पूर्ण स्वप्न-लोक एक साथ उपस्थित हो जाता है । यह संकल्प सृष्टि कही जाती है । यह भी माया सृष्टि का लोक है । जागृत दशा में भी, प्रत्येक व्यक्ति कुछ अपनी कल्पनाओं और मान्यताओं पर आधारित एक अपनी व्यक्तिगत सृष्टि कर लेता है । इसी कल्पित संकल्प-सृष्टि के आश्रय से ही दो व्यक्ति एक-दूसरे से लडते हैं, दो में से कोई भी, दूसरे के विचार को सत्य नहीं मानता है, क्योंकि दोनो अपनी अपनी संकल्प-सृष्टि के प्रति निष्ठावान होते हैं । यही माया लोक है । जीव के मस्तिष्क में, माया की सम्पूर्ण शक्ति निहित है । ज्ञातव्य है, कि माया मात्र भ्रान्ति है । ईश्वर अर्थात् माया सहित ब्रम्ह है, ईश्वर के संकल्प-मात्र से, माया ईश्वर की छाया हिरण्यगर्भ की रचना करती है, यह शास्त्र उपदेश है । पुन: हिरण्यगर्भ ही विस्तृत होकर जगत् बन जाते हैं । ..... क्रमश:  

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