अन्न-आत्मा


माया-कल्पित-जगत्-सोपान
अन्न-आत्मा शास्त्र में जहाँ सृष्टि प्रक्रिया के उल्लेख में सूक्ष्म पंच-महाभूतों से प्रारम्भ करके, स्थूल-पंचमहाभूतों-औषधियाँ-अन्नं-अन्नरस-जीव का क्रम वर्णन किया गया है, वही ज्ञान के शिक्षण के लिये ठीक उलटा क्रम अर्थात् स्थूल से सूक्ष्म का पथ अपनाया गया है । स्थूल शरीर प्रत्येक व्यक्ति का नित्य का अनुभव है, इसलिये शिक्षण का प्रारम्भ स्थूल शरीर से किया गया है । आत्मा जो कि सूक्ष्मतम् है, उसका ज्ञान अन्तिम गन्तव्य होता है । सूक्ष्मतम् आत्मा सर्व-विभू: है, क्योंकि वह अनन्त सत्ता है । जीव का स्थूल-शरीर पूर्णरूप से अन्न से निर्मित है, इसरूप में अन्न सम्पूर्ण शरीर में सर्व-विभू: है । उपरोक्त कथित अन्न समष्टि की व्यष्टि स्थूल-शरीर में सर्व-विभू: स्थिति को, अन्न-आत्मा कह कर व्यक्त किया गया है । ....... क्रमश:

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