निर्गुण सगुण की ओर
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
निर्गुण सगुण की ओर सृष्टि प्रक्रिया अर्थात् अव्यक्त की
व्यक्त दशा में अन्तरित होने की प्रक्रिया, में निर्गुण निराकार ब्रम्ह, सगुण साकार माया-कल्पित-जगत् के रूप में व्यक्त अनुभवगम्य होता है ।
उपरोक्त वर्णित निर्गुण ब्रम्ह क्रमबद्ध सगुण रूप धारण करते हुये व्यक्त दशा में
अनुभवगम्य होता है । निर्गुण जब एक-गुण-धारी रूप लेता है, तो उसे आकाश शब्द द्वारा व्यक्त किया गया है । शब्द अर्थात् ध्वनि गुण
अनुभवगम्य होती है । द्वितीय गुण के रूप में स्पर्ष अनुभवगम्य कराने हेतु, निर्गुण द्वि-गुण-धारी वायु के रूप में व्यक्त हुआ है । तृतीय गुण के
रूप में दृष्य को व्यक्त करने के लिये, निर्गुण त्रि-गुणात्मक अग्नि के रूप में
अनुभवगम्य हुआ है । चतुर्थ गुण स्वाद को अनुभ्यवगम्य कराने के लिये, निर्गुण चार-गुण-युक्त जल के रूप में रूपधारी होता है । पंचम् और अन्तिम
गुण गन्ध को अनुभवगम्य कराने के लिये, निर्गुण पंच-गुण-युक्त पृथ्वी के रूप में
व्यक्त-स्वरूपधारी होता है । ....... क्रमश:
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