सृष्टि शिक्षण मन्तव्य
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
सृष्टि शिक्षण मन्तव्य शास्त्रों में
जगत् के मिथ्यात्व का उपदेश दृढता पूर्वक किया गया है, फिरभी शास्त्र
सृष्टि अर्थात् माया-कल्पित-जगत् की उत्पत्ति प्रक्रिया का भी विस्तृत उपदेश किया
गया है । उपरोक्त वर्णित विदित रूप से विरोधाभास प्रतीत होने वाले शिक्षण का
उद्देष्य क्या हो सकता है ? माया-कल्पित-जगत् न ही एक सत्य अस्तित्व है, न ही यह
माया-कल्पित-जगत् उस पारमार्थिक सत्य ब्रम्ह का अंग है, बल्कि यह
माया-कल्पित-जगत् उस अनन्त आत्यन्तिक सत्य ब्रम्ह की इस जगत् के रूप में
अभिव्यक्ति है । उपरोक्त वर्णित मानसिक ग्राह्यता का विस्तार और व्यापकता सृष्टि
शिक्षण का उद्देष्य है । व्यष्टि की सीमा में बँधा हुआ जिज्ञासु, समष्टि के रूप
में अपने को विराट-देवता और हिरण्यगर्भ-देवता की एक विशिष्ट अभिव्यक्ति के रूप में
ग्रहण करने की मानसिक क्षमता अर्जित करता है । ...... क्रमश:
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें