जीवन एक यज्ञ
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
जीवन एक यज्ञ माया-कल्पित-जगत् का जीव और वस्तु-रूप एक दूसरे से परस्पर व्यवहार करते हैं ।
उपरोक्त कथित व्यवहार-काल में ही जीव इस जगत् से विविध अनुभव अर्जित करता है । जीव
अपने पूर्व-जीवनके अर्जित अनुभव के आधार पर ही आगे के जीवन का योजन करता है ।
उपरोक्त कथित व्यवहार के लिये पांच अनिवार्य वाक्षनायें होती है, एक- पंच-ज्ञानेन्द्रियाँ, दो- पांचो ज्ञानेन्द्रि
में ज्ञान-अर्जन-शक्ति, तीन- जगत् के वस्तु-रूप, चार- ज्ञानेन्द्री और वस्तु-रूप के मध्य भौतिक सम्बन्ध, पांच- ज्ञानेन्द्रियों को कार्यकारी दशा का भोग करने के लिये एक उपयुक्त
स्थूल-शरीर । उपरोक्त कथित समस्त के माध्यम् से जीव यज्ञ रूपी जीवन यापन करता है ।
....... क्रमश:
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