साधन-चतुष्टय-सम्पत्ति
पद-परिचय-सोपान साधन-चतुष्टय-सम्पत्ति यह ज्ञान के जिज्ञासु के लिये आहर्ता है । साधन-चयुष्टय के अंग (1) विवेक – मस्तिष्क में स्पष्ट क्षवि कि हमें क्या चाहिये और क्या नहीं चाहिये । हमें पूर्णता चाहिये और हमें अपूर्णता नहीं चाहिये । (2) वैराग्य – पूर्णता और अपूर्णता दोनो एक दूसरे के विपरीत स्वभाव के हैं इसलिये एक ही व्यक्ति दोनो को उन्मुख नहीं हो सकता है इसलिये , पूर्णता का जो इक्षुक होगा उसे अपूर्णता से विमुख होना होगा , इसे वैराग्य कहा गया है (3) शमादि-षट-सम्पत्ति जिसमें , शम: व्यक्ति का गुण है । शम: की परिभाषा “मनोनिग्रह” है । मनोनिग्रह , मस्तिष्क का नियंत्रण है । मस्तिष्क के षट धर्म , शम: , दम: , उपरति , तितीक्षा , श्रद्धा , समाधानम् को मस्तिष्क की सम्पत्ति के रूप में धारक व्यक्ति को आत्मज्ञान के लिये उपयुक्त पात्र बताया गया है । (4) मुमुक्षु – “आत्मज्ञान” की प्रबल जिज्ञासा है । जिस व्यक्ति में उपरोक्त चार गुण विद्यमान हो उसे इस “आत्मज्ञान” के लिये योग्य अधिकारी कहा जायेगा । ...... क्रमश: