श्रवणं


पद-परिचय-सोपान 
श्रवणं शास्त्रो के उपदेश को गुरू के सानिध्य में रहकर गुरू के मुख से सुनने को श्रवणं कहा जाता है । शास्त्र के उपदेश का संचार श्रवणं द्वारा ही अनादिकाल से संचरित होता आया है । ज्ञान की उपलब्धि श्रवणं द्वारा ही होती है । उपरोक्त कथित स्थिति भावनात्मक अभिव्यक्ति नहीं है अपितु सत्य की अभिव्यक्ति है । उपरोक्त कथित अभिव्यक्ति का प्रमाण है कि ज्ञान आज के वर्तमान में भी विद्यमान है । ज्ञान की प्रक्रिया में शास्त्र एक प्रमाण के रूप में कार्य करते हैं । गुरू शास्त्र प्रमाण का उपयोग, शास्त्र में वर्णित किसी विधि- विषेस से ही करता है । उपरोक्त वर्णित अनुशासित उपदेश के फल से ज्ञान सम्भव होता है । ज्ञान का फल, जीवित रहते जीवन-मुक्ति होती है और मृत्यु-उपरान्त मोक्ष होता है । ....... क्रमश:      

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