चित्त


पद-परिचय-सोपान    
चित्त यह स्मृति संचय का अनुभाग है । प्रत्येक प्रमाण, प्रत्यक्ष द्वारा जिन अनुभव वृत्तियों को मस्तिष्क में लाते हैं, उन वृत्तियों पर यथा अपेक्षा मस्तिष्क कार्य-संचालन भी सम्पादित करता है और साथ ही उन वृत्तियों का भविष्य में प्रयोग हेतु, उनका संचय भी करता है । उपरोक्त वर्णित संचित वृत्तियों को चित्त नाम से जाना जाता है । इस चित्त के आश्रय से ही मस्तिष्क कोई भी अनुभव-ज्ञान प्रक्रिया को सफलता पूर्वक सम्पादित करता है । उपरोक्त कथन की ग्राह्यता के लिये एक दृष्टान्त का आश्रय लेते हैं । व्यक्ति के चित्त में किसी कम्प्यूटर की पूर्व की संचित वृत्ति है । जब भी व्यवहार काल में कम्प्यूटर की कोई वृत्ति चाहे किसी भी प्रमाण यथा चक्षु अथवा कर्ण द्वारा आहरित होती हैं, तत्काल मस्तिष्क तत्-समय आहरित कम्प्यूटर वृत्तियों को, चित्त में संचित कम्प्यूटर वृत्ति के आश्रय से पुष्टि प्राप्त होने पर ही, व्यवहार काल में आहरित वृत्ति को प्रामाणिक मानता है । उपरोक्त वर्णित चित्त वृत्तियों से पुष्टि के आभाव की दशा में तत्-समय आहरित वृत्तियों को मस्तिष्क अस्वीकार करार करता है । यह प्रत्येक व्यक्ति का नित्य का अनुभव है । ........ क्रमश:

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