भ्रान्ति-अनुभूति


पद-परिचय-सोपान     
भ्रान्ति-अनुभूति अहंकार भ्रान्ति है । आत्मा सत्य है । आत्मा के अज्ञान के फल से भ्रान्ति अहंकार का सृजन होता है । परन्तु जीव उपरोक्त वर्णित भ्रान्ति को ही, सत्य के रूप में, अपने जन्म से ही जानता आया है । यह माया की बौद्धिक कुशलता का फल है । उपरोक्त भ्रान्ति-अनुभूति के लिये जीव-व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है । परन्तु उपरोक्त विडम्बना के व्यतिरिक्त उपरोक्त कथित भ्रान्ति का निवारण आत्म-ज्ञान द्वारा ही सम्भव हो सकता है । ..... क्रमश:

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