सत्य-आवृत्तक-माया


पद-परिचय-सोपान    
सत्य-आवृत्तक-माया सत्य ब्रम्ह सर्व-विभू: है । वह कण-कण में विद्यमान है । प्रत्येक जीव के हृदय में विद्यमान है । परन्तु धन्य यह माया है । इस माया ने उस सत्य ब्रम्ह को ढक दिया है । यह व्यवहारिक जगत् का अहंकार द्वारा पोषित व्यक्ति जीव अपनी स्थूल-चक्षुओं द्वारा उस सत्य ब्रम्ह का दर्शन नहीं पाता है । माया सत्य ब्रम्ह को ढकने के उपरान्त भ्रामक मोहक दृष्यों का दर्शन कराती है । यह माया सृष्टि है । यह माया की एक क्षवि है ....... क्रमश:

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