अहंकार


पद-परिचय-सोपान   
अहंकार मस्तिष्क की संरचना इस प्रकार की है कि इसमें सर्व-विभू: चैतन्य के व्याप्ति के फल से यह चेतन-वद् व्यवहार करने में समर्थ हो जाता है । इस प्रकार मस्तिष्क का चेतन आचरण इसका मौलिक धर्म नहीं है । मस्तिष्क तो जड-सूक्ष्म-पंच-महाभूतो से निर्मित है, यह किसी भी दशा में चेतन हो ही नहीं सकता है । परन्तु जड होते हुये भी मस्तिष्क चेतनवद् आचरण करता है । यह प्रत्येक व्यक्ति का नित्य अनुभव है । यह अनुभव ही मस्तिष्क के अज्ञान का आधार है । मस्तिष्क की उपरोक्त वर्णित भ्रान्ति अनुभूति का ही नाम अहंकार लोक-व्यव्हार में विख्यात है । मस्तिष्क उपरोक्त वर्णित चेतन आचरण को अपना मौलिक स्वभाव मानने लगता है, नित्य मानता है, यहाँ तक कि बताने पर भी कि यह भ्रान्ति है, मस्तिष्क उस बताये को सत्य के रूप में स्वीकारता नहीं है । अहंकार व्यक्ति के मस्तिष्क को इतना प्रिय लगता है । ....... क्रमश:

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