सापेक्ष निर्पेक्ष
पद-परिचय-सोपान
सापेक्ष निर्पेक्ष जो कुछ भी सापेक्ष है वह किसी अन्य पर आश्रित है । परिवर्तन का आधार ही
समय पर लम्बित है । समय सदैव परिवर्तनशील है । इस प्रकार जो कुछ भी सापेक्ष है वह
पारमार्थिक सत्य हो ही नहीं सकता है । अद्वैत वेदान्त का विरोध करने वाले दर्शन
अनेक विचार लाते हैं, यथा जो बाह्य है वह सत्य है और जो
अन्तर्भूत है वह मिथ्या है । कंचिद उपरोक्त कथन का अधार वह स्वप्न को अन्तर्भूत
मानते हुये मिथ्या बताते हैं और बाह्य वस्तुरूप जगत् को सत्य बताते हैं । परन्तु
उपरोक्त कथन का आधार बाह्य और अन्तर्भूत स्वयं ही सापेक्ष है, क्योंकि किसी भी वस्तु को बाह्य यदि कहा जा रहा है तो किसी के सापेक्ष
ही तो वह बाह्य है, इसी प्रकार अन्तर्भूत भी किसी के सापेक्ष
ही दूसरा अन्तर है, इसलिये उपरोक्त वर्णित विरोधियों का मत
किसी भी प्रकार पारमार्थिक सत्य हो ही नहीं सकता है । पारमार्थिक सत्य निर्पेक्ष
ही हो सकता है । जो किसी पर आश्रित नहीं है । इसी विचार के सत्य रहते ही निर्पेक्ष
दूसरों को सत्यत्व प्रदान करने वाला होता है । इसीलिये वह अद्वयं है । द्वैत का
भाव ही आश्रय पर आधारित है । चिर सत्य मात्र एक है । वह ही सर्व का आधार है । .......
क्रमश:
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