वृत्ति-प्रक्षेपक-माया
पद-परिचय-सोपान
वृत्ति-प्रक्षेपक-माया मस्तिष्क के अन्दर गति करने वाली सूक्ष्म वृत्तियाँ इन स्थूल चक्षु करण
द्वारा देखी नहीं जा सकती हैं । यह मस्तिष्क की कार्य क्षमता का परिसीमन है ।
उपरोक्त वर्णित सूक्ष्म वृत्तियों को माया प्रक्षेपित करके दृष्टि-गोचर बनाती है ।
दृष्य-रूप में माया द्वारा प्रक्षेपित वृत्तियाँ जगत् को ज्ञेय हो जाती हैं । इस
स्थल पर विषेस ज्ञेय यह है कि, कौन व्यक्ति उपरोक्त कथित प्रक्षेपित
वृत्तियों को किस रूप में ग्रहण करता है । उपरोक्त वर्णित प्रक्षेपित वृत्तियाँ
मात्र प्रातिभासित सत्य होती हैं । परन्तु व्यवहारिक जगत् का अहंकार को पोषित करने
वाला व्यक्ति जीव इन्हे सत्यवद् ग्रहण करता है । इसीलिये वह परिच्छिन्न है ।
इसीलिये वह त्रासित है । जबकि एक ज्ञानी उपरोक्त कथित प्रक्षेपित वृत्तियों को
मात्र प्रातिभासित ग्रहण करता है । इसलिये वह इनसे भ्रमित नहीं होता है । यह माया
की एक क्षवि है ....... क्रमश:
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