माया
पद-परिचय-सोपान
माया यह बहुत ही व्यापक अर्थ धारक शब्द है । इसका सीधा
अर्थ अथवा व्याख्या सम्भव नहीं हो सकती है । यह विविध रूपों में, विविध संदर्भो में उद्घृत की जाती है । उद्घृत किये जाने वाले कुछ एक संदर्भो
को अलग अलग शीर्शक में आगे के अंको में प्रस्तुत किया जायेगा जिससे इसकी छवि का
बोध सम्भव हो सकता है । ब्रम्ह को शास्त्र निराकार, निर्विकार, असंग उपदेश करते हैं । ऐसे ब्रम्ह का कोई सम्बन्ध इस
जगत् के साथ होना सिद्ध नहीं किया जा सकता है । फिर भी यह जगत् ब्रम्ह के आश्रय पर
ही लम्बित है । उपरोक्त वर्णित विरोधी स्थितियों की व्याख्या माया है । माया
अनिर्वचनीय है । फिरभी माया वह समस्त कर दिखाती है जिसे असम्भव कहा जाता है । ऐसी
माया का छवि-बोध आगे के अंको में अलग-अलग रूपों में अवलोकन निवेदित है ......
क्रमश:
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