मननं
पद-परिचय-सोपान
मननं श्रवणं द्वारा
गुरू प्रसाद से प्राप्त हुये शास्त्र के उपदेश का जिज्ञासु द्वारा अपने मस्तिष्क
में चिन्तन करना मननं कहा जाता है । मननं की प्रक्रिया ज्ञान की प्रक्रिया का
अनिवार्य और अ-परिहार्य अंग होती है । ज्ञान का उद्देष्य केवल शैक्षिक उपलब्धि
नहीं होता है अपितु ज्ञान को अंगीकार कर जीवन-यापन होता है । उपरोक्त लक्ष्य की
उपलब्धि मननं द्वारा ही सम्भव हो सकती है । जिज्ञासु को यदि उपदेश किये गये किसी
अंश-भाग की छवि स्पष्ट न होने की दशा में गुरू के सम्मुख प्रश्न रखकर निराकरण
प्राप्त करने का विधान होता है, परन्तु गुरू के सम्मुख जिज्ञासु कोई
प्रश्न मननं की प्रक्रिया के उपरान्त ही कर सकता है । मननं गुरू के उपदेश को
आत्मसात् करने की प्रक्रिया है । .... क्रमश:
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