अ-व्यक्त-धारक-माया


पद-परिचय-सोपान      
अ-व्यक्त-धारक-माया कार्य-जगत् का प्रलय-काल में लय अपने कारण ब्रम्ह में होता है । उपरोक्त वर्णित रूप में, माया इस दृष्य-जगत् का लय-धारक स्थल है । यह दृष्य-जगत् प्रलय-काल में अव्यक्त-दशा में पर्णित होकर माया में समाहित हो जाता है । ब्रम्ह असंग है । ब्रम्ह न ही किसी कार्य का कारण हो सकता है और न ही किसी कारण का कार्य हो सकता है । उपरोक्त वर्णित रूप में, यह माया कार्य-जगत् की अव्यक्त-दशा में धारक होने के रूप में ब्रम्ह की योग-निद्रा-शक्ति है । यह माया की अभिव्यक्ति की एक छवि है ....... क्रमश:

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