निर्माण का विभाग
शिक्षण-विधि-सोपान निर्माण का विभाग कर्म का विभाग है । यह मस्तिष्क को आधार मानकर जीवन यापन है । मस्तिष्क माया-कल्पित-जगत् का अवयव है । मस्तिष्क वासना और सन्सकार से संचालित होता है । यह विकार का विभाग है । उपरोक्त कथित कारणों और आधार पर राग-द्वेष - ईर्ष्या-मत्सर आदि इस विभाग के अ-परिहार्य प्रभावी अवयव हैं । इस विभाग में , क्या है और क्या होना चाहिये दोनो होते है । क्या है , वह लोकव्यवहार है । क्या होना चाहिये , वह धर्म का क्षेत्र है । इस विभाग में कर्ता होता है । इस विभाग में पाप-पुण्य हैं । इस विभाग में कर्म-कर्मफल हैं । इस विभाग में तारतम्य है । इस विभाग में कर्ता कर्म कर्म-प्रक्रिया , ज्ञाता ज्ञेय ज्ञान प्रक्रिया , भोक्ता भोज्य भोजन प्रक्रिया , जागृतदशा स्वप्नदशा सुशुप्ति दशायें हैं । यह सापेक्षता का लोक है । यह परिवर्तनों का विभाग है । इस विभाग में जन्म और मृत्यु हैं । ...... क्रमश: