ज्ञाता ज्ञेय ब्रम्ह


शिक्षण-विधि-सोपान
ज्ञाता ज्ञेय ब्रम्ह आत्मा ही ज्ञाता भी है । आत्मा ही ज्ञेय भी है । उपरोक्त तथ्यात्मक स्थिति के होते हुये भी, भ्रान्ति द्वैत दर्शन द्वारा जगत् का प्रत्येक जीव ग्रसित है । यही माया है । जो नहीं है, उसे माया अनुभूत कराती है । यह अति विज्ञानमय लीला है । इससे उबरने में ही मोक्ष पुरुषार्थ है । इन्द्रियों की रचनागत स्थिति है कि वह सत्य का दर्शन नहीं कर सकती है । समस्त द्वैत मस्तिष्क से सृजित होते हैं । जब सुशुप्ति की दशा में व्यक्ति होता है, मस्तिष्क नहीं होता है, कोई द्वैत नहीं रहता है । प्रत्येक व्यक्ति कितनी शान्ति और सुख की अनुभूति करता है । विडम्बना इतनी ही है कि उस अद्वैत की स्थिति का व्यक्ति को ज्ञान नहीं रहता है । यदि जागृत दशा में व्यक्ति उस सुशुप्ति वाले अद्वैत की स्थिति को प्राप्त कर सके तो वह ज्ञान की स्थिति है । परन्तु जहाँ मस्तिष्क जागृत हुआ, तत्काल अहंकार उपस्थित, फलत: एक मिथ्या ज्ञाता-कर्ता तैयार और द्वैत उपस्थित है । यही माया का विज्ञान है । यही माया का जाल है । उसी मस्तिष्क से ज्ञान की दशा को पाना भी है, और वही मस्तिष्क ही ज्ञान की बाधा भी है । इस कारण ही आत्मज्ञान के लिये मस्तिष्क की सत्विकता और शास्त्र प्रमाण सर्वाधिक महत्वपूर्ण वाँक्षना है । ..... क्रमश:     

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साधन-चतुष्टय-सम्पत्ति

चिदाभास

निषिद्ध-कर्म