ब्रम्हज्ञान
शिक्षण-विधि-सोपान
ब्रम्हज्ञान जगत् के
सम्पूर्ण जड प्रपंच और जीव प्रपंच की उत्पत्ति आत्मा से हुई है, यह शास्त्र
उपदेश है । इसलिये ब्रम्ह का अनुसंधान करने के लिये किसी स्थान विशेष अथवा काल
विशेष की वाँक्षना नहीं है । सम्पूर्ण जगत् ब्रम्ह की ही अभिव्यक्ति है । वस्तुरूप
जगत् में बहुरूपता है । इसलिये बहुरूपता में एकता का शोध करने में, जिज्ञासु पथ भूल
जाता है, भटक जाता है ।
इसलिये गुरू उपदेश करते हैं, कि ब्रम्ह का अनुसंधान अपने हृदयदेश में करों, वहाँ एकता है ।
जिस चेतन सत्ता से सम्पूर्ण जगत् उदय हुआ है, वह तुम्हारी
आत्मा के रूप में तुम्हारा स्वयं अपना स्वरूप है । यह आत्मस्वरूप केवल अहंकार के
भ्रामक अज्ञान से आवृत्त है, ढका हुआ है । यह माया की लीला का फल है ।
शास्त्र उपदेश जिज्ञासु के उस आवृत्त करने वाले अज्ञान को हटा देते हैं, आत्मज्ञान तो
स्वयं प्रकाश है, उसके ज्ञान के लिये किसी अन्य प्रकाश की वाँक्षना नहीं होती है । किसी
कर्म की अपेक्षा नहीं है । अज्ञान का नाश ही ज्ञान की प्राप्ति है । उपरोक्त
अभिव्यक्ति में, प्राप्ति भी भ्रामक शब्द है, आत्मज्ञान कोई प्राप्ति नहीं है, वह तो नित्य
प्राप्त ही है । ....... क्रमश:
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