सत् और असत्
शिक्षण-विधि-सोपान
सत् और असत् सत्ता, जो स्थित है, वह सत् है । जिसकी
स्थित नहीं है, वह असत् है । प्रश्न उठेगा कि स्थिति क्या है ? स्थिति क्या गुण
है ? नहीं स्थिति गुण
नहीं है, गुण सदैव सत्ता
से भिन्न होता है । दृष्टान्त, नील-कमल में नीलिमा कमल का गुण है जो कि कमल से
भिन्न है । सत्ता कमल की है । लाल कमल भी होता है । उपरोक्त दृष्टान्त से भिन्न, सत्ता स्थिति
सर्वव्यापी होती है । अत: वह गुण नहीं है । हाँ यह अवश्य है, कि सत् को
व्यक्त होने के लिये किसी रूप माध्यम की अपेक्षा होती है । दृष्टान्त, कोई भी
वस्तु-रूप है । उस वस्तु-रूप का सत्यत्व उसके प्रत्येक कण में व्याप्त होता है ।
उपरोक्त स्थिति को ही कहा जाता है, कि जगत् के रूप में भासित होने वाले वस्तु-रूप
माया हैं, जिनका सत्यत्व
सत् जो कि ब्रम्ह है, आवृत्त है । सत् का प्रारम्भ और अन्त सम्भव नहीं है । इसलिये ही ब्रम्ह
अविनाशी है । सत् में विकार सम्भव नहीं है । इसलिये ही ब्रम्ह निर्विकार है । सत्
का कोई संकोचक नहीं हो सकता है । इसलिये ही ब्रम्ह अनन्त है । सत् निराकार है ।
कोई भी रूप-आकार सत् के सत्यत्व से ही इन्द्रीय साक्षात् के लिये उपलब्ध होता है ।
....... क्रमश:
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