सादृष्य


शिक्षण-विधि-सोपान
सादृष्य समुंद्र है । उसमें लहरे हैं । लहरे छोटी है । लहरे बडी है । नयी लहरो का उदय हो रहा है । लहरों का लय हो रहा है । लहरों में गति है । सुनामी लहर का भयावह आतंक है । छोटी लहर को बडी लहर से ईर्ष्या है । लहरो में स्पर्धा है । उदय है । लय है । त्रास है । भय है । संताप है । किसी ने उपरोक्त समस्त की शिकायत समुद्र से किया, तो समुंद्र उत्तर देता है, लहरे तो मेरा वैभव हैं । बेचारा शिकायतकर्ता जाकर जल से कहता है, कि तुम्हारा समुद्र अति अशिष्ट है । पानी शिकायतकर्ता की बाते सुनकर हंसता है, कहता है कि मैं तो सदैव जल हूँ, यह सब नाम समुंद्र, लहरे, छोटी बडी तो तुमने रख लिये हैं, तुम स्वयं इन नामों में उलझे हो, तुम ही जानो, मैं तो सदैव एक हूँ, जल है । आत्मा के सत्यत्व पर यह क्रीडा करता हुआ यह मायालोक जगत् भी उपरोक्त दृष्टान्तवद् ही है । ....... क्रमश:

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