ब्रम्हसूत्र
शिक्षण-विधि-सोपान
ब्रम्हसूत्र समस्त फैला हुआ माया-कल्पित-जगत्-प्रपंच और समस्त फैला हुआ
माया-कल्पित-जीव-प्रपंच दोनो ही, एक उभयनिष्ठ सत्य-आश्रय-ब्रम्ह द्वारा
उसी प्रकार जुडा हुआ है, जिस प्रकार एक माला में अनेको मणियाँ एक
सूत्र के माध्यम् से जुडी हुई रहती हैं । ब्रम्हसूत्र एक ग्रन्थ का भी नाम हैं ।
अ-द्वैत वेदान्त के तीन स्तम्भ-ग्रन्थ हैं, एक- ब्रम्हसूत्र, दो- दस-उपनिषद, तीन- भगवद्गीता । ब्रम्हसूत्र ग्रन्थ के
रचयिता ऋषि वेदव्यास हैं । इसमें अद्वैत वेदान्त के दर्शन का निरूपण है । इसमें
श्रुतियों के मन्त्रों के तात्पर्य का निर्णय है । यह सभी सम्प्रदायों नामत:
वैष्णव, शैव, शाक्य, गाणपत्य को मान्य
है, सभी के आचार्यों द्वारा समादरित है । द्वैत मतावलम्बी आचार्य
माधवाचार्यजी कहते हैं कि ब्रम्हसूत्र के प्रत्येक सूत्र को ॐ शब्द द्वारा
सम्पुटित कर दिया जाय, कितना आदर सूचक अभिव्यक्ति है । इस
ग्रन्थ में पाँच सौ पछपन सूत्र हैं । प्रत्येक सूत्र का विषय वाक्य, उपरोक्त कथित दस उपनिषदों के विभिन्न मन्त्र है । विषय वाक्य का अर्थ है, कि उपनिषदों के वह मन्त्र जिनकी व्याख्या विभिन्न सम्प्रदाय भिन्न भिन्न
ढंग से करते हैं । ब्रम्ह-सूत्र ग्रन्थ में एक सौ ईक्यनवे अधिकरण हैं । चार अध्याय हैं । इस ग्रन्थ में न्यायिक
विवेचना के आश्रय से अद्वैत वेदान्त के दर्शन को सिद्ध किया गया है । चारो वेदों
के शिक्षण का केन्द्रीय लक्ष्य ब्रम्ह है । ब्रम्ह और आत्मा एक है ।
ब्रम्ह-आत्मा-ऐक्यं ज्ञान ही ज्ञान है ।
...... क्रमश:
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