लय प्रलय
शिक्षण-विधि-सोपान
लय प्रलय व्यक्ति जब
सुशुप्ति की दशा में होता है, उसका मस्तिष्क अव्यक्त दशा में होता है, यह लय है ।
व्यक्त-दशा और अव्यक्तदशा का चक्र है । यह सतत् गतिमान रहता है । व्यष्टि स्तर पर
लय है, समष्टि स्तर पर
हिरण्यगर्भ जो कि समष्टि मस्तिष्क हैं, वह जब सुशुप्ति में जाते हैं, तो वह प्रलय की
दशा है । लय की दशा में व्यक्ति के लिये कोई जगत् नहीं है । प्रलय की दशा में
सम्पूर्ण जगत् अव्यक्तदशा में चला जाता है । इसीलिये सृष्टि की उत्पत्ति भी चक्रीय
व्यवस्था है । न ही कोई उत्पत्ति है । न ही कोई विध्वंस है । केवल व्यक्तदशा है ।
अव्यक्तदशा है । शाश्वत् आत्मा जो कि ज्ञान स्वरूप है, वह पारमार्थिक सत्य
है । यह दृष्य जगत्, उस पारमार्थिक आत्मज्ञान में, उदय होता है, कालान्तर से लय हो
जाता है । इस जगत् की सत्ता स्वप्नवद् है, जो उदय होता है, लय होता है । इस उदय
और लय के सादृष्य से, शास्त्र उपदेश यह बोध कराते हैं, कि यह दृष्य जगत् भी स्वप्नवद् मिथ्या अनुभूति मात्र
है । ...... क्रमश:
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