आत्मा सर्वस्य
शिक्षण-विधि-सोपान
आत्मा सर्वस्य विगत माया-कल्पित-जगत्-सोपान का सम्पूर्ण विवरण जो
प्रस्तुत किया गया भोज्यकरण, दृष्टा-दृष्य-जगत् का
प्रत्येक अवयव का उद्भव आत्मा से होता है । देश, काल, कार्य-कारण इन तीनो का उद्भव आत्मा से है । उपरोक्त
समस्त का उद्भवश्रोत होते हुये भी, आत्मा उपरोक्त समस्त से
असंग है, निर्लिप्त है । माया, आत्मा की सृजनात्मक शक्ति है । माया में दो शक्तियाँ निहित हैं, एक- आवरण शक्ति है, दो- विक्षेप शक्ति है ।
आवरण शक्ति से माया सत्य, अर्थात् आत्मा को ढक
देती है । विक्षेप शक्ति से माया आत्मा को, ज्ञाता-ज्ञेय-ज्ञान के त्रिकुटी के रूप में प्रक्षेपित करती है । उपरोक्त
त्रिकुटी का ज्ञाता अर्थात् लोकव्यवहार का अहंकार, ज्ञेय अर्थात् भोज्य-जड-वस्तुरूप-जगत्, और ज्ञान, अर्थात् वस्तुरूप ज्ञान है । यह लोकव्यवहार का जगत्
स्वरूप है । ज्ञान यात्रा का गन्तव्य स्थल आत्मा है, जो उपरोक्त व्यवहारिक जगत् का उद्भवस्थल भी है, और उपरोक्त का प्रकाशक भी है । उपरोक्त वर्णित ज्ञान-यात्रा का करण, मस्तिष्क है, जो स्वयं माया का सृजन है, और माया का लोकव्यवहार के जगत् में, उपकेन्द्र भी है ।
मस्तिष्क माया का उपकेन्द्र कैसे है ? मस्तिष्क ही व्यक्ति को, स्वप्नकाल में स्वप्न उसी प्रकार प्रक्षेपित करके दिखाता है, जिस प्रकार माया, ईश्वर के सत्यत्व को आवरण करके यह बहुरूपीय जगत्
प्रक्षेपित करती है । उपरोक्त कारणों से ही आत्मज्ञान गूढ है, इसके लिये अति शाश्वत् मस्तिष्क की अपेक्षा होती है । ........ क्रमश:
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