दृष्टिभ्रम और मोंह


शिक्षण-विधि-सोपान
दृष्टिभ्रम और मोंह इस दृष्य जगत् का प्रत्येक अवयव नामत: समस्त जड प्रपंच और समस्त जीव प्रपंच मात्र दृष्टिभ्रम हैं । यह माया का कौशल है । ब्रम्ह की कुशल मानसिक क्षमता है । ब्रम्ह की सशक्त सृजनात्मक शक्ति है । उपरोक्त वर्णित जगत् को सत्य मानने वाला अहंकार पोषित मनुष्य, जगत् के नाम-रूप वस्तुओं के मोंह से ग्रसित है । वह मनुष्य इस काल से बाधित जगत् में सुरक्षा खोजता है । परन्तु उसे मिलती नहीं है । वह आनन्द खोजता है । परन्तु उसे मिलता नहीं है । विषय गुणात्मक प्रकृत निर्मित हैं । इसलिये बन्धनकारी उनका स्वभाव है । अर्थपुरुषार्थ की साधना त्रासदाओं की सम्पदा के श्रोत हैं । व्यक्ति जन्म से मृत्यु पर्यन्त पुरुषार्थ करता है । परन्तु अपनी उपलब्धि से तृप्त नहीं होता है । यह सब गुणात्मक प्रकृति की लीला है । ...... क्रमश:

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