तीन आकाश


शिक्षण-विधि-सोपान
तीन आकाश शास्त्रों में तीन आकाश का उल्लेख है । पहला स्थूल आकाश है, इसकी उत्पत्ति आत्मा से होती है । दूसरा चित्त-अकाश है । यह माया है । यह स्थूल आकाश से सूक्ष्म है । तीसरा चिदाकाश है । यह ब्रम्ह है । यह सूक्ष्मतम है । मनुष्य स्थूल आकाश में स्थित है । उसका चर्मोत्कर्श गन्तव्य लक्ष्य चिदाकाश है । उपलब्ध साधन उसका अन्त:करण है । जो व्यक्ति शास्त्र प्रमाण के आश्रय से, धर्मपुरुषार्थ द्वारा अपने अन्त:करण को परिष्कृत करके, सत्य के अनुसंधान में, तत्वज्ञानी गुरू की शरण ग्रहण करके, तपस्या करता है, वह माया को अतिक्रमित करने में सफल होता है । आत्मज्ञान कोई प्राप्ती नहीं है । वह तो नित्य प्राप्त ही है । केवल माया को लांघना ही ज्ञान की प्राप्ति है । माया से आत्मा आवृत्त है । ....... क्रमश:   

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