सत्य ब्रम्ह


शिक्षण-विधि-सोपान
सत्य ब्रम्ह पारमार्थिक सत्य ब्रम्ह है । ब्रम्ह का निरूपण शास्त्रों में सत् चित् आनन्द द्वारा किया गया है । सत् शब्द से व्यक्त होता है, ब्रम्ह स्वरूप का वह पहलू जिसे स्थिति कहा जाता है । स्थिति अर्थात् काल की सीमा से परे है । प्रश्न उठेगा कि यह स्थिति जड भी हो सकती है । इस जडता का निषेध करने के लिये चित् है । यह सत् चित् देश अर्थात् आकाश की सीमा से भी अतीत है । इस व्यापकता को व्यक्त करने के लिये अनन्त है । जीव-व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता देश, काल और पदार्थ अर्थात् वस्तु की सीमा के साथ बद्ध है, क्योंकि यह माया का अवयव है । तीन स्तर हैं । पहली सीमा आकाश है । दूसरी सीमा माया है । तीसरी सीमा उपरोक्त दोनो सीमाओं से अतीत है । वह ब्रम्ह है । उपरोक्तानुसार सत्य समस्त ज्ञात सीमाओं से अतीत है । ऐसे सत्य तत्व का ज्ञान-बोध इस सीमित क्षमता के माया निर्मित मस्तिष्क द्वारा करना अति विलक्षण लक्ष्य है । यह प्रमाण अर्थात् ज्ञान के साधन, ज्ञान के माध्यम् के सम्भव नहीं है । श्रुतियाँ वह प्रमाण हैं, जो व्यक्ति को उपरोक्त कथित् सत्य का साक्षात् अपरोक्ष ज्ञान कराती हैं । श्रुतियों के तात्पर्य का निर्णय ब्रम्ह-सूत्र में है, जो कि वेदान्त का दार्शनिक प्रस्थान है, और उपरोक्त निर्णयों के प्रवर्तक भगवान ऋषि व्यास हैं । ....... क्रमश:  

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