योनिगत:
शिक्षण-विधि-सोपान
योनिगत:
काठ अर्थात् लकडी के गर्भ में अर्थात् योनि में, अग्नि विद्यमान
रहती है, परन्तु वह व्यक्त नहीं होती है । जब
अग्नि रूपधारी होती है, तब व्यक्ति को उसका सज्ञान सम्भव होता है
। पुन: जब अग्नि का व्यक्त रूप समाप्त हो जाता है, पुन: काठ अपने
स्वरूप में अग्नि को समाहित किये हुये है, परन्तु दृष्टा व्यक्ति को अग्नि उस काठ
में नहीं दीखती है । योनि का अर्थ गर्भ भी होता है, योनि का अर्थ कारण
भी होता है । कारण ही व्यक्त दशा में कार्य है । कार्य ही अव्यक्त दशा में कारण है
। यह दृष्य जगत्, हमारी ही आत्मा से व्यक्त रूप में
उपस्थित होता है । यह दृष्य जगत्, अव्यक्त दशा में हमारी ही आत्मा में
समाहित हो जाता है । उपरोक्त वर्णित दशा प्रत्येक व्यक्ति के साथ नित्य घटित होती
है, केवल व्यक्ति विचारशील नहीं है । ..... क्रमश:
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