प्रकृति अष्टकम्


शिक्षण-विधि-सोपान
प्रकृति अष्टकम् ब्रम्ह की सृजनात्मक शक्ति का ही नाम प्रकृति है, माया है । यह प्रकृति आठ अवयवों के माध्यम से इस माया कल्पित जगत् का संचालन कर रही है । अष्टधा प्रकृति, पंच महाभूत नामत: आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी, तथा तीन नामत: मन, बुद्धि एवं अहंकार जो कि जीव कोटि के अन्त:करण के नाम से विख्यात हैं, के माध्यम से ही इस जड-जीव-युक्त मायालोक का संचालन कर रही है । उपरोक्त कथित अष्टधा प्रकृति ही इस माया लोक के भोक्ता और भोज्य हैं, ज्ञाता और ज्ञेय है, कर्ता और कर्म हैं । उपरोक्त कथित अष्टधा प्रकृति के मायलोक की उपलब्धि जीव कोटि के मनुष्य को, पाप और पुण्य के रूप में होती है । यह अर्जित पाप और पुण्य ही जन्म और मृत्यु के हेतु हैं । यह अनन्त चक्र है । यह अज्ञान का चक्र है । अज्ञान अनादिकालीन है । परन्तु उपरोक्त कथित अनादिकालीन अज्ञान का अन्त ज्ञान द्वारा सम्भव है । इसलिये ही शास्त्र ब्रम्ह जिज्ञासा का उपदेश करते हैं । ...... क्रमश:

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