मिथ्यात्व निश्चय


शिक्षण-विधि-सोपान
मिथ्यात्व निश्चय भगवती श्रुति सतत् जगत् के मिथ्यात्व का उपदेश करती हैं । उपरोक्त उपदेश का आधार, भगवती श्रुतियों में उपदेशित, इस जगत् का ब्रम्ह-अभिन्न-निमित्त-उपादान कारण है, है । उपरोक्त दोनो उपदेशों पर आधारित, जगत् के मिथ्यात्व की व्याख्या दो भिन्न दृष्टियों से इस प्रकार है, एक- सम्पूर्ण जगत् के, सत् के रूप में व्यक्त सकल जड-प्रपंच और चित् के रूप में व्यक्त सकल जीव प्रपंच, केवल ब्रम्ह ही है जो कि नाम-रूप-क्रियाकारिता द्वारा जड रूपों में आच्छदित है और पंचकोषों की उपाधियों से जीव प्रपंचों में आवृत्त है, दो- जगत् के दृष्य नाम-रूप-क्रियाकरिता से युक्त सकल जड प्रपंच, और पंच-कोषो से आवृत चेतना की अभिव्यक्ति करने वाले सकल जीव प्रपंच, केवल व्यवहारिक सत्य हैं, इनकी सत्ता आश्रित है, यह सभी सापेक्ष हैं, इन समस्त का आश्रय निरुपाधिक अविकारी अनन्त असंग आत्म-ब्रम्ह है । उपरोक्त दोनो व्याख्यायें एक ही तथ्य का दो दृष्टियों से निरूपण मात्र हैं । पहला ज्ञान की दृष्टि है, दूसरा अज्ञान की दृष्टि है । विचार करिये, क्या अज्ञान ज्ञान का आभाव है, अथवा एक वस्तु-स्थिति का ज्ञान है । इसका उत्तर हम नहीं लिख रहे हैं । यह प्रश्न पाठक को मनन करने के लिये छोड रहें हैं । आगे के अंको में इस प्रश्न का उत्तर हम देंगे, परन्तु प्रत्यक्ष में नहीं अपितु किसी अन्य व्याख्या में समाहित करके प्रस्तुत होगा, गुरू के अनुग्रह का स्मरण करते हुये ईश्वर बन्दन करते हैं  । ...... क्रमश:   

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