प्रत्यय
शिक्षण-विधि-सोपान
प्रत्यय आत्म-चैतन्य मस्तिष्क के मार्ग से इन्द्रियों पर्यन्त, पुन बाह्य-विषय पर्यन्त विस्तृत होता है । उपरोक्त विस्तृत
चैतन्य से विषय भासित होता है । उपरोक्तानुसार भासित विषय, प्रत्यावर्तित होकर इन्द्रि के पथ से मस्तिष्क में वृत्ति-रूप में आता है
। उपरोक्तानुसार मस्तिश्क में आयी हुई विषय वृत्ति को वस्तु-रूप-विषय प्रत्यय कहा
जाता है । उपरोक्त कथित विषय-प्रत्यय-वृत्ति में जब आत्म-चैतन्य वेध करता है, तो वह विषय-ज्ञान बन जाता है । मस्तिश्क विषय-ज्ञान का
स्थल होता है । विषय-ज्ञान-प्रक्रिया उपरोक्तानुसार होती है । उपरोक्तानुसार
इन्द्रीय प्रत्यक्ष सदैव प्रत्यय मार्ग से होता है । उपरोक्त से यह निष्कर्श भी
निकलता है कि, इन्द्रीय प्रत्यक्ष उन्ही
विषयों का सम्भव हो सकता है जिसका मस्तिष्क में प्रत्यय बन सकता है । अन्यथा की
स्थिति होने पर, इन्द्रीय प्रत्यक्ष नहीं
सम्भव हो सकता है । ..... क्रमश:
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