चढाव उतार समता


शिक्षण-विधि-सोपान
चढाव उतार समता सत्ता और शक्ति की लीला रूपी इस जगत् में, जब शक्ति प्रचण्ड रूप धारण करती है, काली माता जिनकी रक्तिम जिह्वा बाहर लटकती हुई, माता की आठो भुजाओं में दिव्य शस्त्र, गले में कटे हुये सिरों की मुण्डमाला, माता सत्ता को अपने पैरों तले रौंद कर प्रगट होती हैं । जब शिव समाधिष्ट हो जाते हैं, माया पलायन कर जाती है, शिव का तीसरा चक्छु खुलता है, माया जल कर भस्म हो जाती है । जब शिव और पार्वती सम भाव से कैलाश पर्वत पर साथ बैठ सतसंग करते है, कार्तिकेय और गणेश के रूप में यह जगत् उपस्थित हो जाता है । समुद्र में लहरे हैं, लहरे छोटी हैं, लहरे बडी हैं, लहरो में स्पर्धा है, लहरों को एक दूसरे से भय है, समुद्र तो सदैव शान्त है । लहरे, समुद्र यह सभी उपाधियां मात्र है, जो जल के सत्यत्व पर आरोपित हैं । आत्मस्वरूप के सत्यत्व पर ही यह सम्पूर्ण शिव और शक्ति की लीला गति कर रही है । जब तक व्यक्ति इस लीला के दृष्यों में लिप्त है, वह राग-द्वेष, काम-क्रोध, इच्छा-मोंह का भोक्ता है । श्रुति भगवती अपने अमृतस्य पुत्रों को उपदेश करती हैं, अपने स्वरूप में स्थापित हो जावो तुम तो स्वयं अनन्त हो, ज्ञानस्वरूप हो, आनन्दस्वरूप हो, कहाँ त्रासों में लिप्त हो, यह माता का स्नेह अपने अमृतस्य पुत्रों को बुला रहा है । भगवान शंकर अपने भाष्य में श्रुती भगवती की करुणा को व्यक्त करते हुये लिखते हैं कि यदि किसी व्यक्ति को एक साथ एक हज़ार माता हों तो उसे जितना स्नेह उन माताओं से मिलेगा उससे भी अधिक स्नेह श्रुति भगवती अपने अमृतस्य पुत्रों पर बरसा रहीं है । चुनाव जगत् के मोंहक दृष्यों और आत्म-स्वरूप के मध्य है । प्रखर विवेक की अपेक्षा है । ...... क्रमश:

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