अनिर्वचनीय


शिक्षण-विधि-सोपान
अनिर्वचनीय आकाश में नीलमा होती नहीं है, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति का नित्य का अनुभव है कि आकाश नीला दीखता है । जो वस्तु जिस अधिकरण में भासित हो रही है, वह उस अधिकरण में नहीं है । यह अनिर्वचनीयता है । अद्वैत-वेदान्त भासमानिता का निषेध नहीं करता है । जगत् भासित हो रहा है । परन्तु जगत् की भासमानिता आत्म-चैतन्य के अधिकरण में देखी जा रही है, जबकि आत्म-चैतन्य के अधिकरण में जगत् नहीं है । आत्मा चेतन है । जगत् जड है । चेतन में जड का होना कैसे सम्भव है । यह अनिर्वचनीयता है । अनिर्वचनीयता का अर्थ यह नहीं होता है कि वह वस्तु है नहीं अथवा उसका निर्वचन नहीं किया जा सकता है । वस्तु भासती है । उसके भासने का निर्वचन भी किया जाता है । परन्तु जिस अधिकरण में वह भास रही है, उस अधिकरण में वह नहीं है । यह अनिर्वचनीयता है । ...... क्रमश: 

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