अपने आभाव में दीखना
शिक्षण-विधि-सोपान
अपने आभाव में दीखना जगत् की प्रत्येक वस्तु अपने आभाव में ही दीखती है । उपरोक्त अभिव्यक्ति
की व्याख्या इस प्रकार है, जैसा कि पूर्व के लेख शीर्षक प्रत्यय
में बताया गया था, किसी भी वस्तु-रूप का प्रत्यय मस्तिष्क
में बनता है, आत्म-चैतन्य के उपरोक्त कथित प्रत्यय में
व्याप्त होने पर ही, वस्तु-रूप-ज्ञान-बोध मस्तिष्क में सम्भव
होता है । उपरोक्त विवरण में वस्तु-रूप-विषय का प्रत्यय भी आत्म-चैतन्य के आश्रय
से ही सृजित हो रहा है, और वस्तु-रूप-ज्ञान-बोध-भी आत्म-चैतन्य
के प्रत्यय में वेध से ही सम्भव होता है । उपरोक्त समस्त विवरण अनुसार
जड-विषय-वस्तु-रूप का ज्ञान-बोध चैतन्य में हो रहा है, और निश्चय ही उस चैतन्य में वह विषय-जडता नहीं है । उपरोक्तानुसार यह
कथन कि जगत् की प्रत्येक वस्तु अपने आभाव में ही दीखती है, अनिर्वचनीयता का आधार बनती है । ....... क्रमश:
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