ज्ञान क्रिया इच्छा


शिक्षण-विधि-सोपान
ज्ञान क्रिया इच्छा सत्व, रज़स, तमस यह तीन उपाधियाँ हैं जिनसे माया शक्ति को व्यक्त किया जाता है । सत्व में विभू: आत्मा का वेध होता हैं तो रूपबोध सम्भव होता है । रज़स में विभू: आत्मा का वेध होता है तो कर्म का उदय होता है । तमस में विभू: आत्मा का बेध होता है तो प्रज्ञा का आच्छादक सृजित होता है । व्यक्ति का अन्त:करण पंचमहाभूतों की तन्मात्राओं के चार-बटा-पाँच भाग सात्विक अंश द्वारा निर्मित है । इसलिये ही उसमें शब्द, स्पर्ष, रूप, रस, और गंध का अनुभव ज्ञान की क्षमता होती है । उपरोक्त कथित पंचमहाभूतों की तन्मात्राओं के शेष एक बटा पाँच सात्विक अंश से पंच ज्ञानेन्द्रियाँ निर्मित हैं । इसलिये ही मोंह का सृजन ज्ञान इन्द्रियों और मन दोनों के संयुक्त भागीदारी द्वारा सृजित होते हैं । ज्ञातव्य हैं कि मन की तीन मौलिक विकृतियाँ नामत: मल, विक्षेप, अज्ञान इन्ही उपरोक्त वर्णित प्रमाद, रज़स और सत्व के आच्छादन से सृजित होती हैं । ज्ञान जिज्ञासु को उपरोक्त के निवारण के पुरुषार्थ की अपेक्षा होती है । ....... क्रमश:  

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