उपाधि महात्म्य


शिक्षण-विधि-सोपान
उपाधि महात्म्य व्यक्ति की शरीर का अन्नमयकोष, उसके प्राणमयकोष का अभिव्यंजक होता है, उसका प्राणमयकोष उसके मनोमयकोष का अभिव्यंजक होता है, उसका मनोमयकोष उसके विज्ञानमयकोष का अभिव्यंजक होता है, उसका विज्ञानमयकोष उसके आनन्दमयकोष का अभिव्यंजक होता है, उसका आनन्दमयकोष उसके अव्यक्त अर्थात् माया-शक्ति का अभिव्यंजक होता है, उसका अव्यक्त उसके आत्मा का अभिव्यंजक होता है । ज्ञानबोध यात्रा अर्थात् आत्मबोधयात्रा का उपरोक्त वर्णित क्रम है । स्थूलतम् अन्नमयकोष से प्रारम्भ कर सूक्ष्मतम् आत्मबोध पर्यन्त है । उपरोक्त ज्ञानयात्रा निषेध पथ से होती है । अन्नमयकोष के निषेध द्वारा प्राणमय की प्राप्ति है, प्राणमयकोष के निषेध द्वारा मनोमयकोष की प्राप्ति है, इसी क्रम से आत्मबोध पर्यन्त है । निषेध क्या है ? मिथ्यात्वनिश्चय निषेध है । मिथ्यात्व की अनेक परिभाषायें प्रसंग के अनुसार की गई है । प्राप्त प्रसंग में मिथ्या का अर्थ इस प्रकार ग्रहण करना अपेक्षित है । जिसकी स्थिति, बहुसंख्यक परिस्थितियों के आश्रय द्वारा सिद्ध होती है, वह मिथ्या है । ...... क्रमश:

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