साधन क्या हैं


शिक्षण-विधि-सोपान
साधन क्या हैं लोकव्यवहार में संलग्न व्यक्ति जिस चैतन्य के आश्रय से व्यवहार-रत् है, वह अहंकार है । आत्मा चैतन्य-स्वरूप है । दोनो के मध्य जो भेद है, वह आश्रय और विषय के रूप में है । आत्मा का स्वरूप बोध लक्ष्य है । यह स्वरूप बोध, अहंकार नामक चैतन्य जो कि मात्र चैतन्य की छाया सदृष्य अनुभूति मात् है, द्वारा कंचिद सम्भव प्रयत्न नहीं है । परन्तु स्वरूप बोध मस्तिष्क में ही होना है । उपरोक्त वर्णित कारण ही, मस्तिष्क को सर्वप्रथम तो यही बोध कराना अनिवार्य वाँक्षना है, कि अहंकार ही अज्ञान का स्वरूप है, परन्तु यह अज्ञान का बोध मस्तिष्क जो अनादिकाल से इस अज्ञान को ही अपना शासक मानता आया है इतने आसानी से स्वीकारने को तत्पर नहीं होता है, इसलिये साधनो का आश्रय लेना पडता है, साधन शनै: शनै: मस्तिष्क को अज्ञान को स्वीकारने के लिये तैयार करते हैं । जब मस्तिष्क अहंकार नामक अज्ञान को स्वीकार लेता है, तब उसे शास्त्र आत्म-ज्ञान जो कि पार-लौकिक ज्ञान है, की ओर ले जाते है । ..... क्रमश:

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