एक परीक्षण मानक


शिक्षण-विधि-सोपान
एक परीक्षण मानक जो कुछ भी अर्थात् कार्य-कारण-रूपी-वस्तु-रूप, काल, अथवा देश से हुडा हुआ है, चार आभावो नामत: एक- प्रागाभाव, दो- प्रध्वंसाभाव, तीन- अत्यन्ताभाव, चार- अन्योन्याभाव में से किसी एक से जुडा हुआ है, वह ब्रम्ह नहीं हो सकता है । उपरोक्त नामित चारो आभावो का विस्तार इस प्रकार है, एक- प्रागाभा, जो पहले नहीं थी और अब हो गई, इस श्रेणी में अपनी मानसिक वृत्तियों का दृष्टान्त ग्रहण करना निवेदित है, इस मानसिक वृत्तियों के विचार में ब्रम्हाकार-वृत्ति और समाधी भी आ जायेगी, दो- प्रागाभाव, जो आज है और कालान्तर में नहीं रह जायेगी, इन्हे अनित्य कहा जायेगा, इस श्रेणी में अपनी स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर का दृष्टान्त ग्रहण करना निवेदित है, तीन- अत्यन्ताभाव, जिनमें विषय और आश्रय भिन्न हों, इस श्रेणी में जगत् के विषय-वस्तु-रूपी कार्य-कारण-बद्ध-वस्तुओं का उदाहरण निवेदित है, चार- अन्योन्याभाव, स्वयं अपने में बदलती हुई वृत्तियाँ, इस श्रेणी में मस्तिष्क में प्रवाह करने वाली प्रत्यय वृत्तियों का दृष्टान्त ग्रहण करना निवेदित है । उपरोक्त वर्णित चार श्रेणी में आने वाली कोई भी स्थिति ब्रम्ह नहीं हो सकती है । दूसरे शब्दों में ब्रम्ह किसी भी दशा में, प्रागाभाव-प्रतियोगी, प्रध्वन्साभाव-प्रतियोगी, अत्यन्ताभाव-प्रतियोगी, अन्योन्याभाव-प्रतियोगी नहीं हो सकता है । ....... क्रमश:  

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