उपाधियाँ और व्यवहार


शिक्षण-विधि-सोपान
उपाधियाँ और व्यवहार एक पुरुष पिता के परिसीमन से पुत्र है, पत्नी के परिसीमन से पति है, पुत्र के परीसीमन से पिता है । विचार कीजिये कि वह पुरुष चौथा है अथवा केवल एक है । एक नारी पिता के परिसीमन से पुत्री है, पति के परिसीमन से पत्नी है, पुत्र के परिसीमन से माँ है । विचार कीजिये कि वह नारी चौथी है अथवा केवल एक है । लोकव्यवहार किसके मध्य हो रहा है ? उपाधियों के मध्य अथवा उस पुरुष और नारी के मध्य हो रहा है । उपाधियों का क्या कोई अस्तित्व है ? अथवा केवल मान्यता हैं ? व्यवहार के फल से सुखी अथवा दु:खी कौन हो रहा है, उपाधियाँ ? पुरुष या नारी ? उपरोक्त दृष्टान्त है । प्रत्येक व्यक्ति की जागृतदशा, स्वप्नदशा, सुशुप्तिदशा का सम्बन्ध उसकी आत्मा के साथ उपरोक्त दृष्टान्त के सदृष्य ही है । यदि उपरोक्त दृष्टान्त का आप सही निष्कर्श निकालने में समर्थ हो जायेंगे, तो आपको अपनी आत्मा की स्थिति का सही ज्ञान सम्भव है । ..... क्रमश: 

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