सदोष विषम


शिक्षण-विधि-सोपान
सदोष विषम प्रकृति स्वभाव से परिवर्तनशील है और गुणयुक्त है । लोकव्यवहार में संलग्न व्यक्ति प्रातिभासित चेतन से संचालित है । प्रातिभासित का अस्तित्व नहीं होता है अपितु वह केवल प्रतीत होती है । उपरोक्त विस्तार युक्त लोकव्यवहार के दोनो अवयव प्रकृति और पुरुष केवल विकारों में संलग्न होते हैं । इसलिये ही राग-द्वेष, काम-क्रोध, इच्छा-मोंह स्वाभाविक प्रतिफल के रूप में सृजित होते हैं । यह समस्त अनुभूतियाँ मन में विक्षेप उत्पन्न करने वाली होती हैं । व्यक्ति की देह का जो पाँच कोषों में शिक्षण किया गया है, उसका तात्पर्य यह है कि इन प्रत्येक कोष में आच्छादक क्षमता भी है, और अभिव्यँजक क्षमता भी है । जो प्रतिबन्धक हैं वही मोक्षदायक भी हैं । मनोमयकोष और विज्ञानमयकोष के समुचित उपयोग की निर्णायक भूमिका होती है । जितने भी उपदेश शास्त्रों में हैं, वह इसी मन और विवेक के समुचित उत्थान को लक्षित है । ..... क्रमश:

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