अभिव्यक्ति
शिक्षण-विधि-सोपान
अभिव्यक्ति भगवती श्रुति आत्मा का बोध कराने के उद्देष्य से मनुष्य की शरीर को पाँच
स्तरों नामत: अन्नमयकोष,
प्राणमयकोष, मनोमयकोष, विज्ञानमयकोष, और आनन्दमयकोष में विभक्त करके उपदेश करती है । श्रुति भगवती ब्रम्ह का
उपदेश करते हुये ब्रम्ह को सत् चित् आनन्द का उपदेश करती है । उपरोक्त कथित ब्रम्ह
का सत् अंश मनुष्य का अन्नमयकोष और प्राणमयकोष द्वारा व्यक्त होता है, चित् अंश मनोमयकोष और विज्ञानमयकोष द्वारा व्यक्त होता
है, तथा आनन्द अंश आनन्दमयकोष
द्वारा व्यक्त होता है । माया शक्ति के तीन अभिव्यक्त रूप ज्ञानशक्ति मनोमयकोष और
विज्ञानमयकोष द्वारा ज्ञानेन्द्रियों के साथ क्रियाशील होकर व्यक्त होती है, क्रियाशक्ति प्राणमयकोष द्वारा कर्मेन्द्रियों के साथ क्रियाशील होकर व्यक्त
होती है और इच्छाशक्ति अन्नमयकोष द्वारा व्यक्त होती है । सत् चित् आनन्दस्वरूप
आत्मा उपरोक्त वर्णित समस्त अभिव्यक्तियों से विलक्षण है, यद्यपि कि उपरोक्त समस्त अभिव्यक्तियाँ आत्मा की ही हैं फिरभी आत्मा
उपरोक्त समस्त से असंग है अछूता है । स्वरूप ज्ञान इसीलिये जीवन का सर्वोच्च
श्रेयस पुरुषार्थ बताया गया है । उपरोक्त आत्मज्ञान के अभाव के कारण ही व्यक्ति
उपरोक्त कथित अभिव्यक्तियों को ही सत्यवद् व्यवहृत कर रहा है, जिसका फल असुरक्षा, काम-क्रोध,
राग-द्वेष, लोभ-भय हैं । .....
क्रमश:
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