विचार क्रम


शिक्षण-विधि-सोपान
विचार क्रम शास्त्रों में उपदेशित सृष्टि के सृजन क्रम के अनुसार, ब्रम्ह ने अपने एकल अद्वयं स्वरूप को, दो रूप नामत: शिव अर्थात् सत्ता और शिवा अर्थात् माता पार्वती अर्थात् माया शक्ति के रूप में व्यक्त किया है । पुन: शक्ति तीन भागो नामत: ज्ञान शक्ति अर्थात् सत्व गुण, क्रिया शक्ति अर्थात् रज़स गुण, इच्छा शक्ति अर्थात् तमस गुणों में विभक्त हुई है । पुन: शिव ने, पंच महाभूतों को सृष्टि की रचना में प्रयुक्त पदार्थ रूपों की उपलब्धता के हेतु से, अपनी सत्ता प्रदान किया है । पुन: शक्ति ने, सम्पूर्ण जगत् को यथा स्वरूप सत्ता और शक्ति के समन्वित रूप में प्रगट किया है । इसलिये ब्रम्ह विचार का क्रम उपरोक्त वर्णित क्रम से ठीक विपरीत क्रम में हैं । स्थूल जगत् से प्रारम्भ कर सूक्ष्मतम् ब्रम्ह पर्यन्त की यात्रा है । साधक व्यक्ति को अपने पंच कोषो नामत: अन्नमयं कोष, प्राणमयं कोष, मनोमयकोष, विज्ञानमय कोष और आनन्दमय कोष का निषेध करते हुये सूक्ष्मतम् तत्व आत्मा पर्यन्त की साधना है । उपरोक्त साधना में शास्त्र दर्पण की भाँति साधक को उसके स्वरूप अर्थात् आत्मा का दर्शन कराते हैं । शास्त्र समस्त उपदेश प्रक्रिया में जिज्ञासु को निषेध प्रक्रिया द्वारा स्थूल दृष्य जगत् से सूक्ष्मतम् आत्मा की क्षवि को दर्शाते हुये कहते हैं, तत् त्वम् असि, अर्थात् केवल एक सत्य जिसका निषेध सम्भव नहीं है, वह आपका स्वयं आत्मस्वरूप है, जो कि शुद्ध एक-अद्वयं ब्रम्ह तत्व है । ..... क्रमश:

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