ज्ञान स्वरूप आत्मा


शिक्षण-विधि-सोपान
ज्ञान स्वरूप आत्मा आत्म-चैतन्य के आश्रय से ही वस्तु-रूप-ज्ञान सम्भव होता है । समस्त जड-वस्तु-रूप-जगत् आत्म-चैतन्य द्वारा ही प्रकाशित है । जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश के आश्रय द्वारा नेत्र-प्रमाण जड-वस्तु-रूप-जगत् का आभास करने में सफल होती है । उसी प्रकार आत्म-चैतन्य के आश्रय द्वारा ही व्यक्ति का मस्तिष्क जड-वस्तु-रूप-जगत् का ज्ञान-बोध करने में सफल होती है । उपरोक्त कथित दृष्टान्त और दैष्टान्तिक आत्म-चैतन्य जो कि स्वयं ज्ञान-स्वरूप है, का ज्ञान-बोध लक्ष्य है, वह आपका अपना स्वरूप है । आत्मा से ही समस्त जगत् की उत्पत्ति है, स्थिति है, लय है । जागृत-दशा, स्वप्न-दशा, सुशुप्ति-दशा आती है और जाती हैं । आत्म-चैतन्य ज्यों का त्यों स्थिर और सतत् रहता है । आत्म-चैतन्य जगत् की स्थिति और अभाव दोनो का प्रकाशक है । उपरोक्त वर्णित आत्म-ज्ञान श्रुति प्रमाण के श्रद्धालु जिज्ञासु को ही सम्भव हो पाता है । ...... क्रमश:  

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