गूढता का रहस्य


शिक्षण-विधि-सोपान
गूढता का रहस्य लोकव्यवहार में रत व्यक्ति का मस्तिष्क किसी भी अनुभव को देश, काल और कार्य-कारण से जोड कर ही ग्रहण करता है । यह अभ्यास उसका इतना दृढ हो जाता है, कि यदि उसे कोई ऐसी वस्तु का उपदेश किया जाय जो कि देश, काल, और कार्य-कारण से विलक्षण है, तो मस्तिष्क उसे ग्रहण करने को तत्पर नहीं होता है । लोकव्यवहार में मस्तिष्क के सम्मुख कोई वस्तु-रूप है, तो वह उसे देश अर्थात् स्थान से जोडता है, काल के तारतम्य से जोडता है, उस कार्य का कारण क्या है से जोडता है, तब वह उसे ग्राह्य हो जाता है । उपरोक्त के विपरीत जब शास्त्र आत्मा का उपदेश करते हुये मस्तिष्क को ग्राह्य कराने की चेष्टा करते हुये बताता है, कि देश उसका संकोचक नहीं है, काल-कारण अर्थात् बीज़त्व उसमें नहीं है, तो मस्तिष्क ऐसे वस्तु की कल्पना कर नहीं पाता है, तो वह गूढ कहता है । उपरोक्त कथित कारण से ही आत्म-ज्ञान के लिये अति शाश्वत् मस्तिष्क की अपेक्षा शास्त्रों में बतायी जाती है । ...... क्रमश:   

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