ब्रम्ह-विचार के साधन


शिक्षण-विधि-सोपान
ब्रम्ह-विचार के साधन ब्रम्ह-विचार अति-सूक्ष्म-तत्व का विचार है, इसलिये अति सक्षम मस्तिष्क की आवश्यकता होती है । लोकव्यवहार में संलग्न मस्तिष्क मनो-विकारों से आक्रांत और विक्षेपों की चंचलता से युक्त होता है । उपरोक्त के विपरीत ब्रम्ह-विचार के लिये अति शाश्वत्-शान्त मस्तिष्क की आवश्यकता होती है । मस्तिष्क के चार प्रभाग नामत: मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार प्रत्येक के परमार्जन की अपेक्षा होती है । उपरोक्त मन:स्थिति को प्राप्त करने के लिये साधन-चतुष्टय का उल्लेख मिलता है । प्रथम प्रभाग मन, अर्थात् संकल्प-विकल्प प्रभाग की अस्थिरता का निवारण कर, दृढ-निश्चयात्मक स्थिति प्राप्त करने के लिये, विकसित विवेक की वाँक्षना होती है । विक्षेपों के शमन के लिये सांसारिकता के प्रकरणों से वैराग्य की अपेक्षा होती है । वैराग्य की परिभाषा की जाती है, कि राग-द्वेष का शिथलीकरण वैराग्य है । यह भी शान्त मस्तिष्क की अपेक्षा के दिशा में साधन है । पुन: मस्तिष्क के विक्षेप को अनेक भागों में विभक्त करके प्रत्येक विभक्ति को शान्त करने की अनुशंसा की गई है । मन के संकल्प-विकल्प के शमन को शम: कहा गया है । इन्द्रीय वासनाओं से सृजित होने वाले विक्षेपों की शान्ति को दम: कहा गया है । इच्छा-पूर्ति के लिये किये जाने वाले कर्मों से सृजित होने वाले मानसिक विक्षेपों के शमन को उपरति कहा गया है । भाग्यवश उत्पन्न होने वाले सुख और दु:ख की अनुभूतियों से सृजित होनेवाले मानसिक विक्षेपों की शान्ति को तितीक्षा कहा गया है । व्यक्ति के अभिमान के फल से सृजित होनेवाले मानसिक विक्षेपों की शान्ति को श्रद्धा कहा गया है । सन्सार में कुछ बनाने अथवा बिगाडने के मन: विचारों से सृजित होने वाले विक्षेपों की शान्ति को समाधान कहा गया है । उपरोक्त वर्णित छ: शान्ति विभाजनों को षठ सम्पत्ति भी कहा जाता है । अन्तिम परन्तु सर्वाधिक योगकारक होता है, मस्तिष्क में ज्ञान की प्रबल जिज्ञासा जिसे मुमुक्षु कहा जाता है । उपरोक्त साधनों से युक्त जिज्ञासु ही ब्रम्ह-विचार के लिये योग्य पात्र होता है । उपरोक्त वर्णित समस्त विस्तार को यदि शान्त मस्तिष्क से अध्ययन किया जाय तो, उपरोक्त प्रत्येक और सर्व को प्राप्त करने के लिये, किसी विशिष्ट कर्म की अपेक्षा नहीं होती है, अपितु यह मानसिक जागृति है । जिस मस्तिष्क में परिच्छिन्नता का क्षोभ व्याप्त होता है, वह मस्तिष्क अनन्त की प्राप्ति के लिये मुमुक्षु होता है । जिस मस्तिष्क में अपूर्णता की पीडा व्याप्त होती है, वह पूर्णता के लिये मुमुक्षु होता है । जिस मस्तिष्क को बन्धन की पीडा होती है, वह मुक्ति का मुमुक्षु होता है । उपरोक्त समस्त साधन केवल मानसिक जागृति हैं । यह प्रत्येक व्यक्ति के पास प्रतिपल हैं, केवल उनके प्रति व्यक्ति जागरूक नहीं है । ...... क्रमश:

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