चेतन प्रधान विचार
शिक्षण-विधि-सोपान
चेतन प्रधान विचार सत्य की जिज्ञासा की प्रधानता यह शाश्वत् मस्तिष्क का क्षेत्र है । जो
मस्तिष्क वासनाओं से आक्रान्त है, संस्कारो के संतृप्त है, उसे इस भौतिक जगत् की सत्यता में संतुष्टि है, उसे सत्य की जिज्ञासा का प्रश्न ही नहीं उठता है । सत्य की जिज्ञासा
बहुत पुण्यवान व्यक्ति के हृदय में उदय होती है । जिस व्यक्ति के मस्तिष्क में
परिच्छिन्नता का दु:ख एक त्रास और अभाव के रूप में हो जाता है, वासनाओं के बन्धन दु:खदायी लगने लगते वह इन बन्धनों से मुक्त होने को
उद्यत् होता है । पहले वह मुक्त होने को उद्यत् होता है, पुन: यही मुमुक्षा ही ज्ञान की जिज्ञासा बन जाती है । मुमुक्षा में
षठ-सम्पत्ति निहित रहती है, परिलक्षित होती रहती है । मन चैतन्य की
अभिव्यक्ति है । इस मन में चैतन्य का प्रतिबिम्ब भासित होता है । मस्तिष्क में अभिव्यक्त
होने वाला चैतन्य ही अहम् की अनुभूति सृजित करता है । यह अहंकार है । मिथ्या है ।
द्वैत का सृजनकर्ता है । ...... क्रमश:
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