आनन्द स्वरूप
शिक्षण-विधि-सोपान
आनन्द स्वरूप मस्तिष्क में वृत्तियों का आभाव लय है । यह सुशुप्ति दशा है । जागृत दशा
की प्राप्ति, मस्तिष्क में वृत्तियों का विक्षेप है ।
यह माया लोक है । पारमार्थिक आत्मा की “शान्ति” ही एकमात्र दशा है । यह
अनन्त है । अनन्त में किसी विकार की कल्पना सम्भव नहीं है । समस्त विक्षेप माया के
क्षेत्र में हैं । माया के क्षेत्र की स्थित वही है जो दर्पण में प्रतिबिम्ब की
होती है । इसमें अनुभूति है, व्यवहार है, परन्तु कोई स्थिति नहीं है । जब तक व्यक्ति इन विकारों के साथ संलग्न है, शान्ति उसके लिये दुर्लभ है । दृष्टा, दृष्य, और दृग यह तीनों ही अनुभूति मात्र हैं, इनमें से तीनों का
कोई अस्तित्व नहीं है । यही मोंह का जाल है, जिसमें माया शक्ति ने समस्त को बाँध करके
रखा है । एक व्यक्ति जंगल में मार्ग भूल गया, रात्रि हुई वह डरा तो हुआ था, परन्तु सोने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था, बेचारा सोया, तो स्वप्न देखता है कि शेर सामने उसे
खाने के लिये खडा है, बेचारे के पास उससे बचने के लिये कोई
उपाय नहीं था, हारा हुआ वह व्यक्ति उस शेर से पूछता है, कि क्या तुम मुझे खाओगे ? शेर ने उत्तर दिया कि आपही निर्णय करों, स्वप्न तो तुम ही देख रहे हो । प्रत्येक व्यक्ति का अनउत्तरित भय, मृत्यु है । शास्त्र उपदेश कहते है, कि तुम तो अनन्त ब्रम्ह हो, परन्तु जब तुम ही भ्रान्ति में आनन्दित हो तो मुक्ति का निर्णय तुम ही
कर सकते हो, गुरू और शास्त्र क्या कर सकता है । .....
क्रमश:
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