स्थूल और सूक्ष्म
शिक्षण-विधि-सोपान
स्थूल और सूक्ष्म उत्पत्ति का क्रम सूक्ष्म से स्थूल है । ज्ञान का पथ स्थूल से सूक्ष्म
है । स्थूल प्रत्येक को नित्य का अनुभव है । सूक्ष्मतम् ब्रम्ह से स्थूल माया
शक्ति है, माया शक्ति से स्थूल आकाश है, आकाश से स्थूल वायु है, वायु से स्थूल अग्नि है, अग्नि से स्थूल जल है, जल से स्थूल पृथ्वी है । पंच महाभूतों
में सूक्ष्मतम् आकाश केवल एक गुण “शब्द” धारक है, वायु दो गूण
“शब्द” और “स्पर्ष” धारक है, अग्नि तीन गुण “शब्द”, “स्पर्ष”, “दृष्य” धारक है, जल चार गुण “शब्द”, “स्पर्ष”, “दृष्य” और
“स्वाद” धारक है, स्थूलतम् पृथ्वी पांच गुण “शब्द”, “स्पर्ष”, “दृष्य”, “स्वाद” और गन्ध
धारक है । सूक्ष्मतम् आकाश शेष चार महाभूतों से प्रभावित नहीं होता है, अर्थात् वायु आकाश को स्पर्ष नहीं कर सकती है, अग्नि आकाश को जला नहीं सकती है, जल आकाश को गीला नहीं कर सकता है, पृथ्वी आकाश को गन्ध नहीं दे सकती है । इस प्रकार पंचमहाभूतों में आकाश अग्राह्य
हो जाता है, तो माया शक्ति आकाश से भी अधिक अग्राह्य
है, ब्रम्ह सूक्ष्मतम् है चर्मोत्कर्ष है । असंगता आकाश से ही प्रारम्भ हो
जाती है । ब्रम्ह-ज्ञान अर्थात् आत्म-ज्ञान पर्यन्त पहुँचने के लिये माया को
लांघना है । ..... क्रमश:
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें